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शनिवार, 23 नवंबर 2013

मन बड़ा चंचल निकला
मैं जो घर से निकला
तो मुझसे पहले वो निकला
पर फंसे जो कभी किसी मोड़ पर
मन तो भाग निकला
उससे बड़ा जिगर वाला तो दिल निकला
……………। आनंद विक्रम

शनिवार, 14 सितंबर 2013

                                          हमारी हिंदी

बेचारी हमारी हिंदी, कितने जुल्मों सितम झेलती है ,उसके चाहने वालों पर कितना कहर बरपाया जाता है ये तो हम आप अच्छी तरह से जानतें हैं ,इसकी लड़ाई तो अपनों से ही ज्यादा है ……… कभी क्षेत्रवाद का दंश झेलती है तो कभी  विदेशी भाषा के सामने अपने ही हमारी भाषा को नीचा दिखाते है ,आखिर क्यों ? आज हिंदी भाषा में पढाई करने वाले बच्चे अपने को कुंठित महसूस करतें है । बहुत ज्यादा विस्तार में जायेंगे तो शायद चर्चा बहुत बड़ी हो जाए……………………एक छोटी सी बात ! इस देश में रहने वाले कितने लोग इस देश की भाषा में दस्तखत करना पसंद करतें है और ये बात अपने दिल पर हाथ रखकर कहिये ,आपको इस देश की मिटटी की कसम । मैं अपने एक छोटे से अनुभव के बारे में बताता हूँ कि महीने में एक बार संभवतः मुझे एक समारोह में जाना पड़ता है और सभी को अपनी उपस्थिति एक जगह दर्ज करानी पड़ती है  । आप विश्वास नहीं करेंगे एक - दो लोगों को छोड़कर और सभी लोगों के दस्तखत सबकी प्यारी दुलारी भाषा अंग्रेजी में होतें है ………………। अगर कोई काम  करना  है तो कल से नहीं बल्कि आज से ही करतें  है और अभी  से वो भी अपने दस्तखत हिंदी में करके । मैं १००% दावे से कहता हूँ कि आपको इतना सुकून मिलेगा कि जैसे कुछ खोया हुआ मिल गया  ………………आनंद  विक्रम ।

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

कोई ख़ुशी हो
तो न बांटना न सही
तेरा कोई गम तुझे परेशां करें
बेझिझक चले आना
बहुत उम्र गुजार दी हमने
जलते जलते
दोनों बैठ कर
बाँट लेंगे आधा आधा ।
…………आनंद  विक्रम

रविवार, 25 अगस्त 2013

    
                                             
तुम जो आ भर जाते हो
निगाहों के पहुँच में
परेशां दिल को 
सुकून मिल जाता है  
……. आनंद विक्रम

शनिवार, 1 जून 2013


     - 1-
कभी  दर्द दो
तो सह लेंगे हम
कभी  हंस दो
तो जी लेंगे हम
कतरा कतरा कर
हर एक चीज देना
ना दर्द के आदी हैं
ना ही प्यार के .......आनंद 

      



शनिवार, 11 मई 2013

             माँ

बचपन से लेकर बूढी होने तक
माँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
बिटिया बनकर घर महकाती हो
घर का हर कोना चमकाती हो
बहना बन  प्यार  बरसाती हो
माँ का कामों में हाथ बटाती हो
भाई को तुम माँ सा दुलारती हो
छोटी हो तो भी प्यार दिखाती हो 
जब चाहे बहना बन जाती हो
जब चाहे बन जाती दीदी
कितने रूप तुम्हारे हैं माँ
हम गिनते ही रह जाते है
एक समय में रूप अनेकों
माँ तुम सबमे रम जाती हो
पत्नी ,माँ ,भाभी और बहना
माँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
माँ तो माँ होती ही है
दीदी भी माँ जैसी ही है
मौसी तो माँ होती ही है
बुआ भी माँ जैसी ही है
चाची तो माँ होती ही है
हर ममता में माँ होती ही है
बचपन से लेकर बूढी होने तक
माँ तुम कितने रूप दिखाती हो
हर रूप रंग में माँ का रूप
भली भाँती दिखलाती हो
एक समय में रूप अनेकों
माँ तुम सबमे रम जाती हो
पत्नी ,माँ ,भाभी और बहना
माँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
......................आनंद विक्रम .....

सोमवार, 6 मई 2013

      क्या भला 


मेरे अज़ीज़ हर एक चीज की बात करो
एक इश्क के सिवा
अपना दर्द बाटों जहां की बात करो
बेदर्द दिल के सिवा
घर का हाल बताओ मोहल्ले की बात करो
नाकाम मोहब्बत के सिवा
साजो सामान ,घर के बंदोबस्त की बात करो
दिल ए हमदम के सिवा
है क्या भला इसमें
खाक हो जाने सिवा ।
............आनंद विक्रम .....

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

एक पुरानी बात



याद है मुझे अच्छी तरह
तुम्हें याद हो न याद हो
दिया था जब तुम्हें
अपनी शादी का निमंत्रण
तुम्हारे हाथों में
मुझे याद है अभी भी
जब तुमसे मिलने तुम्हारे घर
मैं आया जब पहली बार
चेहरे का रंग देखने लायक था
तुम्हारे होश फ़ाक्ता हो गए 
आखों का भी बुरा हाल था
आश्चर्य से भरी आँखें
बहुत खूबसूरत सी
और प्यारी आखें
याद है मुझे अच्छी तरह
तुम्हें याद हो न याद हो
एक लम्हा तुम्हारे दिल में
मुझे यकीं है ख्याल भी आया
कोई चाहने वाला ऐसा भी मिला
जो इश्क में जलता तो है
जलाना भी जानता है
घर की ढेहरी पर खड़े
तुम यही सोचते रहे
मैंने तो किया नहीं
जिसने किया भी प्यार तो ऐसे किया
और मैं आखों में अश्क बहाये
यही सोचता हुआ
कि काश पहले मिले होते
अपने घर चला आया
याद है मुझे अच्छी तरह
तुम्हे याद हो न याद हो ।
............आनंद विक्रम.........

शनिवार, 20 अप्रैल 2013


 जानवर 


कुछ जानवर  घूम रहें
आदमी  के भेष में
इन जानवरों को
भूख नहीं अन्न की
ये तो भूखे प्यासे हैं
वासनाओं की भूख के
जन्में जिस कोख से
उसी कोख से ये
दरिंदगी दिखा रहे
भूख नहीं अन्न की
उसी कोख से ये
भूख भी मिटा रहे
आदमी के भेष में
कुछ घूम रहे जानवर
होशियार खबरदार
भेडियों से भी जंगली
हैं दरिन्दे ये जानवर
बहु, बेटी और बच्चियों के
भूखे हैं ये जानवर
आदमी के भेष में
कुछ घूम रहें जानवर
..........आनंद विक्रम......

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

........२.........
कुछ यादें पुरानी
शूल सी हैं
जो अकेला देखतें ही
घेर लेतीं है
चौतरफा
कहीं से भाग नहीं सकता
भीड़ तलाशनी पड़ती है 
इन यादों के
साये से बचने के लिए
यादें ऐसी
कि हर बात पर
आँखे डब डबा जातीं हैं
जरा सी तन्हाई हो
तो ऑंखें छलक जातीं है
कमबख्त प्यारी भी तो
लगतीं हैं यादें ।
............आनंद विक्रम........



मंगलवार, 16 अप्रैल 2013



आनंदी 


तुम्हारी जुदाई में
दिन चार दिन के बराबर
तो रातें दिन के दुगुने के बराबर
लगतीं हैं आनंदी
पर सच कहूं प्यार भी तो
रात के दुगुने के बराबर बढ़ा है आनंदी
हमारा वर्षों पुराना प्यार
आज फिर परवान चढ़ा है
दूरियां भले दिख रही हो
पर प्यार खूब बढ़ा खूब बढ़ा आनंदी
..................आनंद ...........

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

तेरी ख़ुशी में मैं शामिल तेरे दुःख में भी
तेरी हर उस चीज में मैं शामिल
जो किसी एहसास को जगाता हो तुझमें
तेरी साँसों की लय पर
अपनी साँसों को जिलाये रखा हूँ
.............आनंद विक्रम.........

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

तेरे बहाने मैं भी मुस्करा लेता हूँ
वर्ना रोने के सिवा मुझे आता क्या है
सच्चाई इन आंसुओ से पूछो
जो भूले से भी मुस्कराया हूँ
तो बह निकले हैं
................आनंद विक्रम ...

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

तू ना मिला ,ना सही
पर तेरा प्यार बहुत कुछ
सिखा गया
अनुभव मिला
एक नाम मिला
एक नयी पहचान मिली
तेरे नाम से
तू ना मिला ना सही
पर तेरा प्यार
कुछ ना दे के भी
दे गया बहुत कुछ
आज मेरी जो पहचान है
वो है सिर्फ और सिर्फ
तेरे नाम से ।
..............आनंद विक्रम .....