माँ
बचपन से लेकर बूढी होने तकमाँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
बिटिया बनकर घर महकाती हो
घर का हर कोना चमकाती हो
बहना बन प्यार बरसाती हो
माँ का कामों में हाथ बटाती हो
भाई को तुम माँ सा दुलारती हो
छोटी हो तो भी प्यार दिखाती हो
जब चाहे बहना बन जाती हो
जब चाहे बन जाती दीदी
कितने रूप तुम्हारे हैं माँ
हम गिनते ही रह जाते है
एक समय में रूप अनेकों
माँ तुम सबमे रम जाती हो
पत्नी ,माँ ,भाभी और बहना
माँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
माँ तो माँ होती ही है
दीदी भी माँ जैसी ही है
मौसी तो माँ होती ही है
बुआ भी माँ जैसी ही है
चाची तो माँ होती ही है
हर ममता में माँ होती ही है
बचपन से लेकर बूढी होने तक
माँ तुम कितने रूप दिखाती हो
हर रूप रंग में माँ का रूप
भली भाँती दिखलाती हो
एक समय में रूप अनेकों
माँ तुम सबमे रम जाती हो
पत्नी ,माँ ,भाभी और बहना
माँ तुम कितने फ़र्ज़ निभाती हो
......................आनंद विक्रम .....
2 टिप्पणियां:
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत सुन्दर ...माँ पर ही सार घर संसार टिका है ..
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