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शनिवार, 14 सितंबर 2013

                                          हमारी हिंदी

बेचारी हमारी हिंदी, कितने जुल्मों सितम झेलती है ,उसके चाहने वालों पर कितना कहर बरपाया जाता है ये तो हम आप अच्छी तरह से जानतें हैं ,इसकी लड़ाई तो अपनों से ही ज्यादा है ……… कभी क्षेत्रवाद का दंश झेलती है तो कभी  विदेशी भाषा के सामने अपने ही हमारी भाषा को नीचा दिखाते है ,आखिर क्यों ? आज हिंदी भाषा में पढाई करने वाले बच्चे अपने को कुंठित महसूस करतें है । बहुत ज्यादा विस्तार में जायेंगे तो शायद चर्चा बहुत बड़ी हो जाए……………………एक छोटी सी बात ! इस देश में रहने वाले कितने लोग इस देश की भाषा में दस्तखत करना पसंद करतें है और ये बात अपने दिल पर हाथ रखकर कहिये ,आपको इस देश की मिटटी की कसम । मैं अपने एक छोटे से अनुभव के बारे में बताता हूँ कि महीने में एक बार संभवतः मुझे एक समारोह में जाना पड़ता है और सभी को अपनी उपस्थिति एक जगह दर्ज करानी पड़ती है  । आप विश्वास नहीं करेंगे एक - दो लोगों को छोड़कर और सभी लोगों के दस्तखत सबकी प्यारी दुलारी भाषा अंग्रेजी में होतें है ………………। अगर कोई काम  करना  है तो कल से नहीं बल्कि आज से ही करतें  है और अभी  से वो भी अपने दस्तखत हिंदी में करके । मैं १००% दावे से कहता हूँ कि आपको इतना सुकून मिलेगा कि जैसे कुछ खोया हुआ मिल गया  ………………आनंद  विक्रम ।

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

कोई ख़ुशी हो
तो न बांटना न सही
तेरा कोई गम तुझे परेशां करें
बेझिझक चले आना
बहुत उम्र गुजार दी हमने
जलते जलते
दोनों बैठ कर
बाँट लेंगे आधा आधा ।
…………आनंद  विक्रम