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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

........२.........
कुछ यादें पुरानी
शूल सी हैं
जो अकेला देखतें ही
घेर लेतीं है
चौतरफा
कहीं से भाग नहीं सकता
भीड़ तलाशनी पड़ती है 
इन यादों के
साये से बचने के लिए
यादें ऐसी
कि हर बात पर
आँखे डब डबा जातीं हैं
जरा सी तन्हाई हो
तो ऑंखें छलक जातीं है
कमबख्त प्यारी भी तो
लगतीं हैं यादें ।
............आनंद विक्रम........



1 टिप्पणी:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

शुभप्रभात
आंखो का क्या
उन्हे तो हर हाल में बहना होता है
शुभकामनायें ..