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रविवार, 12 अगस्त 2012

         

 लड़की का सपना


उस  लड़की  का एक था  सपना 
ससुराल होगा घर  सा  अपना 
दोस्त जैसा पति  होगा 
माँ  जैसी  होंगी  सास 
ससुर  होंगे  पिता  समान 
होंगे  सब  दिल  के धनवान 
बेटी  जैसा  देंगे  प्यार 
ननद  पाउंगी  बहन  समान 
जिससे  होंगी  बातें चार 
हलके  होंगे  दिल  के  भार 
कामों  में  भी  मदद  करेगी 
बहना जैसी  खूब  लड़ेगी 
भैया  जैसा  होगा  देवर 
छोटकू जैसे रहेंगे  तेवर 
दुःख -सुख  में  रहेगा संग 
कभी  नहीं  करेगा  तंग 
उस  लड़की  के यही  थे  सपने 
पर हो न  पाए उसके अपने 
दहेज़ में पैसे की मांग 
उस  लड़की  का  बन गया काल ।

                        आनंद   


रचना पर आप सभी की टिपण्णी चाहूँगा ।

8 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

हमारे समाज के कड़वी सच्चाई है ये...

सार्थक रचना.
अनु

आनन्द विक्रम त्रिपाठी ने कहा…

अनु जी आपका कहना सही है । टिप्पणी के लिये धन्यवाद ।

आनन्द विक्रम त्रिपाठी ने कहा…

अनु जी आपका कहना सही है । टिप्पणी के लिये धन्यवाद ।

Shikha Kaushik ने कहा…

SACH HI LIKH DIYA HAI AAPNE .AABHAR

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

समाज का कटु सत्य
सबसे बुरा और दर्दनाक पहलू...
मार्मिक रचना....

आनन्द विक्रम त्रिपाठी ने कहा…

धन्यवाद रीना जी । स्वागत है ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

सटीक विवेचन .... सुंदर प्रस्तुति ....

आनन्द विक्रम त्रिपाठी ने कहा…

संजय जी "साथी" की रचना पर उत्साहवर्धन टिप्पणी के लिये आभार । स्वागत है ।