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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

यादों की गठरी 

अनजाने ही आज
यादों की पुरानी गठरियाँ
खुल गयी
कोई इधर गयी
कोई उधर गयी
कोई मेरे ठीक सामने
एक याद वो मिली
अपने हाथ में तुम्हारा हाथ लिए
बैठा था देखने रेखाएं
क्या पता था ?
इनमे मैं ही हूं
इसके बाद तो ना पूछो
जरा जरा सी यादें
मुझे निहारने लगी
कोई प्यार से
कोई दुलार से
किसी किसी का गुस्सा तो
आज भी जस का तस
बना हुआ है
अनजाने ही खुल गयी
ये गठरियाँ यादों की
....आनंद विक्रम ..........

1 टिप्पणी:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

यादें ऐसी ही होती हैं
हार्दिक शुभ कामनाएँ