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रविवार, 12 अगस्त 2012

         

 लड़की का सपना


उस  लड़की  का एक था  सपना 
ससुराल होगा घर  सा  अपना 
दोस्त जैसा पति  होगा 
माँ  जैसी  होंगी  सास 
ससुर  होंगे  पिता  समान 
होंगे  सब  दिल  के धनवान 
बेटी  जैसा  देंगे  प्यार 
ननद  पाउंगी  बहन  समान 
जिससे  होंगी  बातें चार 
हलके  होंगे  दिल  के  भार 
कामों  में  भी  मदद  करेगी 
बहना जैसी  खूब  लड़ेगी 
भैया  जैसा  होगा  देवर 
छोटकू जैसे रहेंगे  तेवर 
दुःख -सुख  में  रहेगा संग 
कभी  नहीं  करेगा  तंग 
उस  लड़की  के यही  थे  सपने 
पर हो न  पाए उसके अपने 
दहेज़ में पैसे की मांग 
उस  लड़की  का  बन गया काल ।

                        आनंद   


रचना पर आप सभी की टिपण्णी चाहूँगा ।

बुधवार, 8 अगस्त 2012

"कवि  की ड्योढ़ी " के  विमोचन के अवसर पर  (बायें से दायें)  डॉ0  विमल चन्द्र शुक्ल  , मैं  स्वयं  ( आनन्द  विक्रम  त्रिपाठी )  , डॉ0 जगन्नाथ  पाठक  ( बैठे हुये ,पूर्व  अध्यक्ष , डॉ0 गंगा नाथ झा  विद्यालय ),  डॉ0 सुरेश चन्द्र पाण्डेय ( पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग , इलाहाबाद विश्वविद्यालय , इलाहाबाद, डॉ0 चंद्र्विजय चतुर्वेदी (तत्कालीन सदस्य ,शिक्षा परिषद्  इलाहाबाद ) 


वो मकान वो मोहल्ला वो दर छोड़ा
यहाँ तक की  शहर छोड़ा
याद करने  की  सारी वजह  छोड़ी
पर  जिसमें  सालों  से  कब्ज़ा किये  बैठे  हो
उस  दिल का  क्या  करू ?